Friday, 18 May 2018

फूलों की घाटी : धरती का स्वर्ग

     उत्तराखण्ड स्थित 'फूलों की घाटी" को धरती की स्वर्ग कहा जाये तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। गढ़वाल क्षेत्र की यह 'फूलों की घाटी" पर्यटकों के मन-मस्तिष्क को सुगंध से प्रफुल्लित कर देती है।

    इन्द्रधनुषी रंगों के फूलों से लकदक रहने वाली 'फूलों की घाटी" देश-विदेश के पर्यटकों की पहली पसंद रहती है। वस्तुत: 'फूलों की घाटी" नन्दा देवी अभ्यारण राष्ट्रीय उद्यान का एक सुन्दर हिस्सा है। इसे यूनेस्को से विश्व धरोहर का दर्जा हासिल है।
   'फूलों की घाटी" को वर्ष 1982 में यूनेस्को से यह सम्मान हासिल हुआ। 'फूलों की घाटी" घूमने-फिरने का उचित समय जुलाई से सितम्बर की अवधि है। यह समय कुछ खास भी रहता है क्योंकि इस अवधि में 'फूलों की घाटी" में ब्राह्मकमल खास तौर से खिलते है। नवम्बर से मई तक 'फूलों की घाटी" खास दिखती है क्योंकि इस अवधि में बर्फ से आच्छादित रहती है। 
    करीब आधा किलोमीटर चौड़ी एवं करीब 3 किलोमीटर लम्बी यह 'फूलों की घाटी" काफी कुछ खासियत रखती है। विशेषज्ञों की मानें तो रामायण काल में हनुमान जी संजीवनी की खोज में इसी घाटी में आये थे। 'फूलों की घाटी" वस्तुत: उत्तराखण्ड का उच्च हिमालयी क्षेत्र है। करीब 87.50 वर्ग किलोमीटर दायरे में फैली यह खूबसूरत घाटी पर्यटकों को सहज ऊर्जावान बनाती है।
     पर्यटकों को एक रोमांच का एहसास होता है। खास यह है कि ब्रिाटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ एवं उनके साथी आर एल होल्डसवर्थ ने वर्ष 1931 में इस सुन्दर घाटी को खोजा था। इन पर्वतारोहियों ने इस बेइंतहा खूबसूरत 'फूलों की घाटी" को शब्दों के जरिये एक किताब में उतारा। इसे उन्होंने वैली ऑॅफ फ्लावर्स नाम दिया। खास यह कि 'फूलों की घाटी" 500 से अधिक प्रजातियों के फूलों से आच्छादित रहती है। बागवानी प्रेमियों का यह सबसे पसंदीदा क्षेत्र है।
    'फूलों की घाटी" में सामान्यत: एनीमोन, जर्मेनियम, मार्श, गेंदा, प्रिभुला, पोटेंटिला, जिउम, तारक, लिलियम, हिमालयी नीला पोस्त, बछनाग, डेलफिनियम, रानुनकुलस, कोरिडालिस, इन्डुला, सौसुरिया, कम्पानुला, पेडिक्युलरिस, मोरिना, इम्पेटिनस, बिस्टोरटा, लिगुलारिया, अनाफलिस, सैक्सिफागा, लोबिलिया, थर्मोपसिस, ट्रौलियस, एक्युलेगिया, कोडोनोपसिस, डैक्टाइलोरहिज्म, साइप्रिपेडियम, स्ट्राबेरी, लिली, कैलेंडुला, डेजी, हिमालयन नीले अफीम एवं रोडोडियोड्रान आदि सहित अनेक प्रकार के फूलों की प्रजातियों के फूल परिवेश को सुगंध से आच्छादित रखते हैं।
     करीब 500 प्रजातियों के फूल इस 'फूलों की घाटी" में सुन्दरता एवं सुगंध बिखेरते रहते हैं। बर्फीली घाटियों का यह क्षेत्र बेहद स्वास्थ्यवर्धक है। कारण फूलों में अद्भुत आैषधीय गुण विद्यमान हैं। विशेषज्ञों की मानें तो 'फूलों की घाटी" के फूलों का उपयोग आैषधीय निर्माण में भी होता है। रामायण काल की संजीवनी का कथानक सिद्ध होता है। ह्मदय रोग, अस्थमा, शुगर, मानसिक उन्माद, किडनी, लीवर एवं कैंसर आदि सहित असाध्य रोगों का निवारण क्षमता वाली आैषधीय भी यहां 'फूलों की घाटी" में उपलब्ध हैं।
   अत्यंत दुलर्भ वनस्पतियों का खजाना इस घाटी को माना जाता है। खास यह कि नवम्बर के अंत तक 'फूलों की घाटी" बर्फ से अाच्छादित हो जाती है। बर्फ हटते ही स्वत: 'फूलों की घाटी" एक बार फिर फूलों से लबरेज हो जाती है। 'फूलों की घाटी" में अल्पाइन सहित दुलर्भ प्रजातियों के फूलों की श्रंखला दिखती है।  'फूलों की घाटी" उत्तराखण्ड चमोली जिला में बद्रीनाथ धाम के निकट स्थित है।
    बद्रीनाथ धाम से करीब 20 किलोमीटर दूर स्थित 'फूलों की घाटी" वस्तुत: दो पहाड़ों के बीच का हिस्सा है। रंग बिरंगे फूलों की यह श्रंखला हिमालय में इन्द्रधनुषी रंग भरती दिखती है। नन्दा देवी अभ्यारण का यह हिस्सा देश-विदेश के पर्यटकों से गुलजार रहता है। इस राष्ट्रीय उद्यान में वन्य जीवन का भी अवलोकन होता है।
    मसलन काला हिमालयन भालू, कस्तूरी मृग, हिम तेंदुये आदि राष्ट्रीय उद्यान में प्रवास करते हैं। 'फूलों की घाटी" की यात्रा के लिए पहला पड़ाव गोविन्द घाट है। हरिद्वार से करीब 200 किलोमीटर दूर 'फूलों की घाटी" पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहती है।
     फूलों की घाटी" की यात्रा के लिए सभी आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं। निकटतम एयरपोर्ट जॉली ग्रांट देहरादून में स्थित है। निकटतम रेलवे स्टेशन हरिद्वार में है। इसके अलावा यात्रा के लिए सड़क मार्ग का उपयोग किया जा सकता है।
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