Thursday, 31 May 2018

डलहौजी हिल स्टेशन : गजब की सुन्दरता

    डलहौजी हिल स्टेशन को सुन्दरता का एक श्रेष्ठ प्रतिमान कहें तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिला स्थित डलहौजी हिल स्टेशन डलहौजी धौलाधार पर्वत श्रंखला का एक खूबसूरत एरिया है। 

  वस्तुत: डलहौजी हिल स्टेशन पांच पर्वत श्रंखलाओं के मध्य स्थित है। कठलौंग, पोट्रेन, तेहरा, बकरोटा एवं बलुन पर्वत श्रंखलाओं पर स्थित डलहौजी को ब्रिाटिश हुक्मरानों ने 1854 में बसाया था। 
    समुद्र तल से करीब 2036 मीटर ऊंचाई पर स्थित डलहौजी हिल स्टेशन देश के चुनिंदा हिल एरिया में गिना जाता है। खास यह कि ब्रिाटिश शासनकाल में शासक एवं नौकरशाह गर्मियों की छुट्टियां मनाने यहां आते थे। कारण डलहौजी की सुन्दर वादियां-घाटियां लुभाती थीं।
     विशेषज्ञों की मानें तो डलहौजी देश का सबसे प्राचीन हिल स्टेशन है। ब्रिाटिश गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी के नाम पर यह हिल स्टेशन है। डलहौजी हिल स्टेशन में मखमली घास के सुन्दर लान-ढ़लान हैं तो वहीं पर्वत श्रंखलाओं की सुन्दरता भी पर्यटकों को मोह लेती है। 
     चौतरफा वनस्पतियों का सघन वन क्षेत्र जलवायु को अति शीतल बना देते हैं। सर्दियों में बर्फबारी की ओढ़नी आैर भी अधिक सुन्दर लगती है। चौतरफा धौलाधार एवं पीर पंजाल पर्वत श्रंखला की चोटियां चुम्बकीय प्रतीत होती है। 
     डलहौजी हिल स्टेशन एवं उसके आसपास सुन्दर एवं आकर्षक स्थानों की बेहतरीन श्रंखला है। खास तौर से पंच पुला, सेंट पैट्रिक चर्च, मणि महेश यात्रा, लक्ष्मी नारायण मंदिर, कालाटोप वन्य जीव अभ्यारण, सतधारा वाटर फॉल्स, सुभाष बावली, डैकुण्ड पीक, चामुण्डा देवी मंदिर आदि हैं।
    पंच पुला: पंच पुला डलहौजी हिल स्टेशन का एक अति सुन्दर स्थान है। खास यह कि पंच पुला डलहौजी एवं आसपास के गांवों में पानी की आपूर्ति का मुख्य रुाोत है। महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सरदार अजीत सिंह का समाधि स्थल भी यहीं है। इस खूबसूरत स्थान पर प्राकृतिक कुण्ड एवं छोटे-छोटे पुल भी है। विशेषज्ञों की मानें तो डलहौजी एवं बहलून के पानी में कुछ खास है क्योंकि यह गम्भीर रोगों का निवारक भी है।
     सेंट पैट्रिक चर्च: सेंट पैट्रिक चर्च हास्पिटल रोड पर डलहौजी से करीब 2 किलोमीटर दूर है। डलहौजी का यह सबसे बड़ा चर्च है। चर्च के मुख्य हाल में एक साथ 300 से अधिक लोग बैठ सकते हैं। चर्च का निर्माण 1909 में ब्रिटिश सैन्य अफसरों के सहयोग से किया गया था। चर्च के चारों ओर प्राकृतिक सौन्दर्य की निराली छटा दिखती है। पत्थरों से बनी यह खूबसूरत इमारत उत्तर भारत के खूबसूरत चर्चों में से एक है।
     मणि महेश यात्रा: मणि महेश यात्रा इस इलाके की प्रसिद्ध यात्राओं में से एक है। लक्ष्मी नारायण मंदिर से मणि महेश की यात्रा प्रारम्भ होती है। श्रद्धालु पवित्र छड़ी को मणि महेश झील तक ले जाते हैं। झील इस जिला का प्रमुख तीर्थ स्थल है। श्रद्धालु इस झील में स्नान करते हैं। समुद्र तल से करीब 13500 फुट ऊंचाई पर स्थित यह झील मणि महेश कैलाश चोटी के नीचे है। झील के निकट ही संगमरमर का शिवलिंग है। इसे चौमुख कहा जाता है।
     लक्ष्मी नारायण मंदिर: लक्ष्मी नारायण मंदिर शहर में सुभाष चौक से 200 मीटर दूर सदर बाजार में स्थित है। भगवान विष्णु का यह मंदिर 150 साल से भी अधिक पुराना है। यहां भगवान विष्णु की अति सुन्दर प्रतिमा स्थापित है।
      कालाटोप वन्यजीव अभ्यारण: कालाटोप वन्यजीव अभ्यारण समुद्र तल से करीब 2440 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। घनत्व वाला यह वन क्षेत्र पक्षियों की सुन्दर आश्रय स्थली है। यहां की खूबसूरती देखते ही बनती है। पर्यटक यहां रात्रि विश्राम का आनन्द ले सकते हैं।
     सतधारा वाटर फॉल्स: सतधारा वाटर फॉल्स डलहौजी की सुन्दरता का एक शानदार नगीना है। शांत वातावरण, बर्फ से ढ़कीं पर्वत चोटियां, देवदार के वृक्षों से घिरा क्षेत्र बेहद सुन्दर प्रतीत होता है।
सुभाष बावली: सुभाष बावली डलहौजी से 1 किलोमीटर दूर है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस अक्सर अवकाश बिताने यहां आते थे।
     डैकुण्ड पीक: डैकुण्ड पीक डलहौजी की ऊंची चोटियों में से एक है। बर्फ से ढ़के पहाड़ बेहद सुन्दर लगते हैं। हरा-भरा सुन्दर वातावरण बेहद अच्छा लगता है।
     चामुण्डा देवी का मंदिर: चामुण्डा देवी का मंदिर बानेर नदी के तट पर स्थित है। श्रद्धा, आस्था एवं विश्वास का यह केन्द्र इलाके में बेहद प्रसिद्ध है।
     डलहौजी हिल स्टेशन की यात्रा के सभी आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं। निकटतम एयरपोर्ट गग्गल है। गग्गल एयरपोर्ट से डलहौजी की दूरी करीब 124 किलोमीटर है। निकटतम रेलवे स्टेशन चक्की बैंक है। चक्की बैंक रेलवे स्टेशन से डलहौजी की दूरी करीब 58 किलोमीटर है। इसके अलावा पर्यटक सड़क मार्ग से भी डलहौजी की यात्रा कर सकते हैं। पठानकोट से डलहौजी की दूरी करीब 68 किलोमीटर है।
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Wednesday, 30 May 2018

पोनमुडी हिल स्टेशन: अद्भुत सौन्दर्य

     पोनमुडी हिल स्टेशन को प्रकृति का शानदार अनगढ़ नगीना कहें तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। जी हां, इस हिल स्टेशन का कण-कण प्राकृतिक सुन्दरता से आच्छादित है। 

   पोनमुडी हिल स्टेशन केरल के शानदार हिल स्टेशन में से एक है। समुद्र तल से करीब 1100 मीटर ऊंचाई पर स्थित पोनमुडी हिल स्टेशन पश्चिमी घाट पर्वत श्रंखला का एक सुन्दर हिस्सा है।
   यह हिल स्टेशन केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित है। हिल स्टेशन का अधिसंख्य क्षेत्र अरब सागर के समानान्तर फैला हुआ है। हरितिमा से आच्छादित हिम शिखर एवं मखमली घास का बिछौना फैलाये मैदान एवं ढ़लान बेहद लुभावने प्रतीत होते हैं।
    हिल स्टेशन की सुन्दरता ही है कि मलयालम में इसे स्वर्ण शिखर की संज्ञा दी जाती है। चाय एवं कॉफी के बागानों वाले इस हिल स्टेशन में हमेशा सुहावना मौसम रहता है। खास यह कि आैषधीय वनस्पतियों की प्रचुरता वाले इस हिल स्टेशन में वन्य जीवों की धमाचौकड़ी बेहद लुभाती है। ट्रैकिंग, पर्वतारोहण एवं रॉक क्लाइबिंग जैसे साहसिक खेलों के लिए यह हिल स्टेशन सर्वथा उत्तम स्थान है। 
     गोल्डन वैली सहित इलाके की नदियां अति सुन्दर प्रतीत होती हैं। पोनमुडी हिल स्टेशन की सर्वाधिक ऊंची पर्वत चोटी मोट्टा चोटी है। पर्वतारोहण के लिए यह बेहतरीन इलाका है। पर्यटक यहां पल-पल रोमांच का अनुभव करते हैं।
     पर्वतारोहण के लिए केरल सहित आसपास के इलाकों में पोनमुडी हिल स्टेशन की यह पर्वत चोटी प्रसिद्ध है। हिल स्टेशन के निकट ही पेरिंगमाला गांव है। गांव में इलाके की सांस्कृतिक एवं लोक परम्पराओं का शानदार अवलोकन होता है। हिरण उद्यान में मुख्यत: हिरण समूूह की धमाचौकड़ी दिखेगी। खास यह कि पोनमुडी हिल स्टेशन के इस हिरण उद्यान में हिरणों की असंख्य प्रजातियां दिखती हैं।
    पोनमुडी हिल स्टेशन की यात्रा के लिए सभी आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं। निकटतम एयरपोर्ट तिरुवनंतपुरम है। तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट से पोनमुडी हिल स्टेशन की दूरी करीब 60 किलोमीटर है। यहां से अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट त्रिवेन्द्रम की दूरी करीब 67 किलोमीटर है। निकटतम रेलवे स्टेशन त्रिवेन्द्रम है। इसके अलावा पर्यटक सडक मार्ग से भी इस हिल स्टेशन की यात्रा कर सकते हैं।
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Monday, 28 May 2018

वायनाड हिल स्टेशन: लाजवाब सौन्दर्य

     वायनाड हिल स्टेशन में खूबसूरती के इन्द्रधनुषी रंग दिखेंगे। जी हां, केरल का यह अनोखा एवं विशिष्ट हिल स्टेशन देश दुनिया में खूबसूरती के लिए खास तौर से प्रसिद्ध है।

    समुद्र तल से करीब 2100 मीटर ऊंचाई पर स्थित वायनाड हिल स्टेशन एवं उसके चौतरफा मखमली घास के अनेक शेड्स दिखेंगे। मखमली घास के यह शेड्स पर्यटकों को खास तौर से आकर्षित करते हैं।
   करीब 18 वीं शताब्दी का यह हिल स्टेशन स्वास्थ्यवर्धक वनस्पतियों से भी आच्छादित है। जिससे पर्यटक नया जोश, उत्साह एवं ताजगी महसूस करते हैं। हरितिमा की चादर ओढ़े पर्वत श्रंखला आैर भी अधिक सुन्दर प्रतीत होती है। 
     बारिश के मौसम में वायनाड हिल स्टेशन में सैर सपाटा का आनन्द कहीं अधिक बढ़ जाता है। बादलों की लुका छिपी व बादलों की अठखेलियां रोमांच पैदा करती हैं। कहीं बादलों की धुंध दिखेगी तो कहीं मखमली घास के मैदान आकर्षित करेंगे। वायनाड में प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ प्राचीन स्वरूप भी दिखेगा।
     वायनाड हिल स्टेशन एवं उसके आसपास विशिष्टताओं की एक लम्बी श्रंखला है। खास तौर से चेम्ब्रा चोटी, नीलिमाला, मीनमुट्टी के झरने, चेथालयम वाटर फॉल्स, पक्षीपाथलम, बाणासुर सागर बांध, कालपेट्टा, एडक्कल गुफायें आदि बहुत कुछ दर्शनीय है। वायनाड हिल स्टेशन पुरातात्विक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। वायनाड खास तौर से मसालों, चाय-कॉफी, बांस, शहद एवं हर्बल उत्पादों के लिए बेहद प्रसिद्ध है। वायनाड कुछ दुलर्भ वनस्पतियों के लिए भी जाना जाता है।
     चेम्ब्रा चोटी: चेम्ब्रा चोटी हिल स्टेशन का दक्षिणी क्षेत्र है। करीब 2100 मीटर ऊंचाई पर स्थित यह चोटी मेपादी का शिखर है। चेम्ब्रा चोटी पर चढ़ने के लिए आवश्यक है कि साहस व पराक्रम हो। विशेषज्ञों की मानें तो यह क्षेत्र की सबसे ऊंची चोटी है। पर्वतारोही पर्यटक चोटी पर शिविर बना कर शिखर का आनन्द व अनुभव हासिल करते हैं।
   नीलिमाला: नीलिमाला वायनाड हिल स्टेशन का ट्रैकिंग क्षेत्र है। वायनाड के दक्षिणी इलाका में स्थित नीलिमाला कालपेटा से सुल्तान बाथेरी के मध्य ट्रैकिंग क्षेत्र है। नीलिमाला से मीनमुट्टी फॉल्स एवं अग्रभूमि घाटी का दृश्य आनन्द लिया जा सकता है।
     मीनमुट्टी वाटर फॉल्स: मीनमुट्टी वाटर फॉल्स वायनाड के उत्तरी क्षेत्र में एक शानदार एवं सुन्दर झरना है। वायनाड मुख्य मार्ग से करीब दो किलोमीटर दूर ट्रैंकिंग मार्ग पर यह झरना स्थित है। करीब 300 मीटर ऊंचाई से गिरने वाला यह झरना 3 चरणों में गिरता है। झर-झर, कल-कल गिरता झरना का पानी बेहद रोमांचक प्रतीत होता है।
    पक्षीपाथलम: पक्षीपाथलम मुख्यत: वन क्षेत्र है। समुद्र तल से करीब 1700 मीटर ऊंचाई पर स्थित यह क्षेत्र ब्राह्मगिरी पहाड़ियों से घिरा है। विभिन्न प्रकार की आैषधीय वनस्पतियों की श्रंखला यहां खास है। हाथियों के अलावा अन्य वन्य जीवन की हलचल हमेशा बनी रहती है। मसालों एवं वनस्पतियों की सुगंध मन-मस्तिष्क को तरोताजा कर देती है।
     बाणासुर सागर बांध: बाणासुर सागर बांध को देश का सबसे बड़ा बांध माना जाता है। वायनाड के दक्षिण-पश्चिम में स्थित यह बांध करलाद झील के निकट है। बाणासुर सागर बांध वस्तुत: द्वीप समूह क्षेत्र है।
    पुकूट झील: पुकूट झील वायनाड हिल स्टेशन की एक सुन्दर झील है। घने वन क्षेत्र में स्थित यह झील पर्यटकों से हमेशा आबाद रहती है। केरल के पसंदीदा पिकनिक स्पॉट्स में यह शीर्ष पर है। झील के किनारे बैठ कर मनोरम दृश्यों का आनन्द लिया जा सकता है। पर्यटक यह नौकायन का आनन्द भी ले सकते हैं। 
        सोचिप्पारा वाटर फॉल्स: सोचिप्पारा वाटर फॉल्स इस इलाके का अति लोकप्रिय झरना है। झरना 100 फुट से लेकर 300 फुट की ऊंचाई से नीचे गिरता है। यह झरना कालपेट्टा से करीब 22 किलोमीटर दूर है। खास यह है कि इस झरना की धारायें आगे बढ़ कर 3 झरनों में गिरती हैं। इसकी धारायें मीनमुट्टी, कानथपारा एवं सोचिप्पारा में विभाजित होती हैं।
      एडक्कल गुफायें : एडक्कल गुफाओं को वायनाड हिल स्टेशन की शान कहा जाये तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। सुल्तान बाथेरी से करीब 12 किलोमीटर दूर स्थित यह गुफायें बेहद सुन्दर हैं। नवपाषाण युग की यह सुन्दर गुफायें करीब 1000 मीटर ऊंची अम्बुकुथी पहाड़ी पर स्थित हैं। यह सुन्दर गुफायें हजारों पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।
      वायनाड हिल स्टेशन की यात्रा के सभी आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं। निकटतम एयरपोर्ट कालीकट है। कालीकट एयरपोर्ट से वायनाड हिल स्टेशन की दूरी करीब 65 किलोमीटर है। निकटतम रेलवे स्टेशन कालीकट है। कालीकट रेलवे स्टेशन से वायनाड हिल स्टेशन की दूरी करीब 62 किलोमीटर है। सड़क मार्ग से भी इस हिल स्टेशन की यात्रा की जा सकती है।
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Sunday, 27 May 2018

खजियार हिल स्टेशन: धरती का स्वर्ग

    खजियार हिल स्टेशन की सुन्दरता का कोई जोड़ नहीं। हिमाचल प्रदेश का यह हिल स्टेशन दुनिया के शीर्ष सुन्दर हिल स्टेशन में से एक है।

   समुद्र तल से करीब 2000 मीटर ऊंचाई पर स्थित खजियार हिल स्टेशन सदाबहार देवदार के सुन्दर वृक्षों से घिरा है। सुरम्य स्थान होने व सुन्दर होने के कारण इसे भारत के मिनी स्वीटजरलैण्ड की संज्ञा से भी नवाजा जाता है।
      डलहौजी व चम्बा के बीच स्थित खजियार हिल स्टेशन में घास के मखमली एवं सुन्दर मैदानों एवं ढ़लानों की एक लम्बी श्रंखला है। पश्चिमी हिमालय के दौलाधर पर्वत की तलहटी पर स्थित खजियार हिल स्टेशन वस्तुत: अभ्यारण का एक सुन्दर हिस्सा है।
     खास यह कि इस हिल स्टेशन में चौतरफा एक सुखद अनुभूति होती है। विशेषज्ञों की मानें तो खजियार हिल स्टेशन दुनिया के 160 शीर्ष सुन्दर स्थानों में से एक है। मौज मस्ती एवं सैर सपाटा के लिए खजियार हिल स्टेशन में चौतरफा सुन्दर स्थानों की एक लम्बी श्रंखला है। 
   खजियार हिल स्टेशन पर सर्दियों में बर्फ का दुशाला बड़ा ही सुन्दर दिखता है। यहां की खूबसूरती सैलानियां-पर्यटकों पर गजब ढ़हाती है। पर्यटक यहां घुडसवारी का भी आनन्द ले सकते हैं। खजियार हिल स्टेशन एवं उसके आसपास आकर्षक स्थानों में दौलाधर पर्वत, खजियार झील, खजजी नाग मंदिर, ट्रैकिंग प्वाइंट आदि बहुत कुछ है। 
    विशेषज्ञों की मानें तो धरती पर कहीं स्वर्ग है तो खजियार हिल स्टेशन में है। खजियार हिल स्टेशन की खूबसूरत पहाड़ियां, चारों ओर फैली हरियाली, सुरम्य वादियां पर्यटकों को मदहोश कर देती हैं। खजियार की झीलें दुनियां भर में खास पहचान रखती हैं।
    दौलाधर पर्वत: दौलाधर पर्वत हिल स्टेशन की विशेषता है। घने देवदार एवं पाइंस के वृक्ष सुन्दर पर्यावरण का एहसास कराते है। घना वन क्षेत्र आैर पहाड़ों का मनोरम दृश्य दिलों को छू जाता है।
    खजियार झील: खजियार झील हिल स्टेशन का एक सुन्दर स्थान है। यह एक अस्थायी द्वीप की भांति है। तस्तरीनुमा यह झील करीब 1.50 किलोमीटर लम्बी है। झील किनारे पहाड़ी शैली में बना एक सुन्दर मंदिर भी स्थित है। इस मंदिर में नाग देवता की प्रतिमा स्थापित है। 
     खजजी नाग मंदिर : खजजी नाग मंदिर खजियार झील से कुछ दूर स्थित है। चम्बा के राजा ने 12 वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर का गुम्बद सुनहरा है। लिहाजा इस मंदिर को गोल्डन देवी का मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर के मण्डप में कौरव-पाण्डव की छवियां अंकित हैं। लकड़ी की नक्काशी बेहद आकर्षक एवं शानदार है। यह मंदिर मुख्यत: नाग देवता को समर्पित है। मंदिर में मुख्य तौर से नाग देवता की प्रतिमायें हैं। साथ ही शिव जी एवं देवी हिडिम्बा की भी प्रतिमायें हैं।
      ट्रैकिंग : ट्रैकिंग का यहां एक अलग लुफ्त है। खजियार हिल स्टेशन का यह एक शानदार इलाका है। खजियार ट्रैकिंग एरिया खजियार से प्रारम्भ होकर दैनकुण्ड तक करीब 3.50 किलोमीटर है। दहौसी-खजियार रोड पर करीब 6 किलोमीटर ट्रैकिंग प्वाइंट है।
      कालातोप खजियार अभ्यारण: कालातोप खजियार अभ्यारण बेहद सुन्दर स्थान है। वन्य जीवन के साथ ही यह क्षेत्र वनस्पतियों से भी आच्छादित है। अभ्यारण में खास तौर से हिम वन्य जीवों का विचरण रहता है। कस्तूरी मृग, हिम भालू व हिम तेंदुआ आदि भी दिखते हैं। दुलर्भ वनस्पतियों की प्रचुरता के कारण इसे आैषधीय अभ्यारण क्षेत्र भी माना जाता है। पर्यटक यहां खुद को बेहद स्वस्थ्य एवं ऊर्जावान मानते हैं। पिकनिक के साथ ही यह इलाका ट्रैकिंग के लिए भी जाना पहचाना जाता है।
      खजियार हिल स्टेशन की यात्रा के सभी आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं। पर्यटक खजियार हिल स्टेशन की यात्रा हिमाचल प्रदेश के डलहौजी या चम्बा से भी कर सकते हैं। निकटतम एयरपोर्ट अमृतसर है। अमृतसर एयरपोर्ट से खजियार हिल स्टेशन की दूरी करीब 220 किलोमीटर है। निकटतम रेलवे स्टेशन पठानकोट है। पठानकोट रेलवे स्टेशन से खजियार हिल स्टेशन की दूरी करीब 95 किलोेमीटर है। सड़क मार्ग से भी खजियार हिल स्टेशन की यात्रा कर सकते हैं।
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Thursday, 24 May 2018

चम्बा हिल स्टेशन: बर्फबारी का रोमांच

    चम्बा हिल स्टेशन का मखमली एहसास कभी भूल न पायेंगे। जी हां, चम्बा हिल स्टेशन की ग्रीन कारपेट दिलों में छा जाने वाली है। चम्बा की बर्फबारी का आनन्द ही कुछ आैर है। 

   हिमाचल प्रदेश का चम्बा हिल स्टेशन भले ही छोटा हो लेकिन इसकी सुन्दरता का कहीं कोई जोड़ नहीं। चम्बा हिल स्टेशन की सुन्दर घाटियां देखते ही बनती हैं।
     समुद्र तल से करीब 996 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चम्बा हिल स्टेशन पर्यटकों को ऊर्जावान बनाने के साथ ही उत्साह से भी लबरेज कर देता है। शीतल एवं शांत परिवेश पर्यटकों को खास तौर से लुभाता है। 
     चम्बा हिल स्टेशन रमणीय मंदिरों एवं हस्तशिल्प के लिए देश-दुनिया में विख्यात है। रवि नदी के किनारे स्थित चम्बा हिल स्टेशन पहाड़ी राजाओं की प्राचीन राजधानी थी। चम्बा को राजा साहिल देव वर्मन अस्तित्व में लाये थे। राजा साहिल देव वर्मन की पुत्री चंपावती के नाम पर चम्बा को विकसित एवं आबाद किया गया था। चम्बा शहर एवं चम्बा हिल स्टेशन के चारों ओर आज भी प्राचीन संस्कृति एवं विरासत संरक्षित दिखती है। 
      चम्बा हिल स्टेशन एवं उसके आसपास खूबसूरती एवं प्रकृति के नये आयाम दिखते हैं। चम्बा हिल स्टेशन एवं उसके आसपास आकर्षणों की एक लम्बी श्रंखला है। चम्पावती मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, भूरी सिंह संग्रहालय, भांदल घाटी, भरमौर, चौगान, बजरेश्वरी मंदिर, सुई माता मंदिर, चामुण्डा देवी मंदिर, हरीराय मंदिर, लखन मंदिर, रंगमहल, अखण्ड चंडी महल, खजियार, कूंरा आदि हैं।
     चम्पावती मंदिर: चम्पावती मंदिर एक देवी स्थान है। यह मंदिर मुख्यत: राजा साहिल देव वर्मन की पुत्री को समर्पित है। चम्पावती ने अपने पिता राजा साहिल देव वर्मन को चम्बा नगर स्थापित करने के लिए प्रेरित किया था। शिखर शैली में बना मंदिर बेहद सुन्दर एवं आकर्षक है। मंदिर में खूबसूरत नक्कासी है। मंदिर की छत पहिये के आकार की है।
     लक्ष्मी नारायण मंदिर : लक्ष्मी नारायण मंदिर पारम्परिक वास्तुशिल्प एवं मूर्तिकला का सुन्दर आयाम है। यह मंदिर चम्बा के प्रमुख मंदिरों में सबसे विशाल एवं प्राचीन है। भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर राजा साहिल देव वर्मन ने 10 वीं शताब्दी में बनवाया था। शिखर शैली में निर्मित यह मंदिर बेहद आकर्षक है। मंदिर में एक विमान एवं भव्य-दिव्य गर्भगृह है। मंदिर की छतरियां एवं पत्थर की छत इसे भारी बर्फबारी से सुरक्षित रखती हैं।
     भूरी सिंह संग्रहालय: भूरी सिंह संग्रहालय मुख्यत: चम्बा की सांस्कृतिक विरासत को समर्पित है। चम्बा के राजा भूरी सिंह को कला से प्रेम था। लिहाजा इस संग्रहालय का नाम राजा भूरी सिंह पर रखा गया। राजा भूरी सिंह एवं उनके परिवार की पेंटिंग्स इस संग्रहालय को दान दे दी गयीं थीं। संग्रहालय में सांस्कृतिक विरासत दिखती है। बसहोली एवं कांगड़ा की कला भी संरक्षित है।
    भांदल घाटी: भांदल घाटी खास तौर से वन्य जीव प्रेमियों को आकर्षित करती है। यह सुन्दर घाटी समुद्र तल से करीब 6006 फुट शीर्ष पर स्थित है। चम्बा हिल स्टेशन से करीब 22 किलोमीटर दूर यह घाटी ट्रैकिंग के लिए एक अच्छा स्थान है।
    भरमौर: भरमौर चम्बा की प्राचीन राजधानी है। पहले इसे ब्राह्मपुरा के नाम से जाना जाता था। समुद्र तल से करीब 2195 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। घने वन क्षेत्र से घिरा भरमौर राजघराने से ताल्लुक रखता है। इसे चौरासी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। लक्ष्मी देवी, गणेश जी, नरसिंह भगवान आदि के मंदिर इस क्षेत्र में हैं।
      चौगान : चौगान घास का एक सुन्दर मैदान है। इस मैदान में मिंजर मेला का आयोजन होता है। इसमें हिमाचल की संस्कृति देखने को मिलती है।
     वजरेश्वरी मंदिर: वजरेश्वरी मंदिर एक हजार वर्ष से भी अधिक प्राचीन मंदिर की मान्यता रखता है। शिखर शैली में बने इस मंदिर की छत लकड़ी से निर्मित है। मंदिर की नक्कासी बेहद सुन्दर है।
     चामुण्डा देवी मंदिर: चामुण्डा देवी मंदिर एक पहाड़ की चोटी पर स्थित है। दुर्गा देवी का यह मंदिर खूबसूरत नक्कासी पर आधारित है। भारतीय पुरातत्व विभाग इस मंदिर की देखभाल करता है।
     रंगमहल: रंगमहल को अब हिमाचल सरकार ने हिमाचल इम्पोरियम बना दिया है। इस महल की नींव राजा उमेद सिंह ने 1748 में रखी थी। यह रंगमहल मुगल एवं ब्रिाटिश शैली का सुन्दर उदाहरण है। कभी यह शासको आवास था।
      खजियार: खजियार चम्बा हिल स्टेेशन का एक अति खूबसूरत हिस्सा है। चम्बा से करीब 22 किलोमीटर दूर खजियार पर्यटकों को पसंदीदा क्षेत्र है। यहां एक सुन्दर झील है। यह झील पर्यटकों की पसंदगी में शीर्ष पर रहती है।
    कूंरा : कूंरा वस्तुत: पाण्डव स्थली के तौर पर जाना पहचाना जाता है। जिला मुख्यालय चम्बा से करीब 53 किलोमीटर दूर कूंरा महाभारत काल में पाण्डव का आश्रय स्थली भी रहा है। कुंती के नाम पर इस स्थान का नाम कुंतापुरी पड़ा था। शनै-शनै इसका नाम बदल कर अब कूंरा हो गया।
       छतराड़ी : छतराड़ी चम्बा हिल स्टेशन से करीब 45 किलोमीटर दूर है। करीब 6000 फुट ऊंचाई पर बसा यह गांव शक्ति पीठ स्थल के तौर पर जाना जाता है। पहाड़ी पर शैली मंदिर स्थित है।
        चम्बा हिल स्टेशन की यात्रा के लिए सभी आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं। निकटतम एयरपोर्ट अमृतसर है। अमृतसर एयरपोर्ट से चम्बा हिल स्टेशन की दूरी करीब 240 किलोमीटर है। निकटतम रेलवे स्टेशन पठानकोट है। पठानकोट रेलवे स्टेशन से चम्बा हिल स्टेशन की दूरी करीब 140 किलोेमीटर है। सड़क मार्ग से भी चम्बा हिल स्टेशन की यात्रा कर सकते हैं।
32.552867,76.129617

Wednesday, 23 May 2018

रानीखेत हिल स्टेशन : सुखद एहसास

      रानीखेत हिल स्टेशन को हिमालय का श्रंगार कहा जाये तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। रानीखेत में पर्वतीय क्षेत्र का एक सुखद एहसास है तो वहीं बादलों की गलबहियां आनन्द की पराकाष्ठा है।

  उत्तराखण्ड के जिला अल्मोड़ा का रानीखेत हिल स्टेशन समुद्र तल से करीब 1870 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। रानीखेत वस्तुत: देश का चुनिंदा हिल स्टेशन है। 
    खास यह है कि इस हिल एरिया का रखरखाव भारतीय सेना के हाथों में है। रानीखेत गांव का पर्यावरण मानों कि पर्यटकों के जीवन में आनन्द के पंख लगा देता हो। मखमली घास के सुन्दर पार्क-ढलान मानों दिलों को सहला देते हों। 
     रानीखेत में बादलों की अठखेलियां हैं तो वहीं बर्फबारी का भरपूर आनन्द एवं रोमांच भी है। पाइन, ओक एवं देवदार के घने वन क्षेत्र रानीखेत को सुगंधित पर्यावरण से लबरेज रखते हैं तो वहीं वन्य जीवन से भी रानीखेत आबाद रहता है।
      देश के चुनिंदा गोल्फ कोर्स में से एक रानीखेत में स्थित है। गोल्फ कोर्स रानीखेत का मुख्य आकर्षण है। इसके अलावा रानीखेत हिल स्टेशन में आशियाना पार्क, मानखेश्वर मंदिर, रानीझील, बिंसार महादेव, हैडाखान मंदिर, भालू बांध, माजखली, कटमामल सूर्य मंदिर, कुमांऊ रेजिमेंटल संग्रहालय, झूला देवी मंदिर, राममंदिर, चौबतिया गार्डेन आदि दर्शनीय, सुन्दर एवं खास क्षेत्र हैं।  
    गोल्फ कोर्स: गोल्फ कोर्स एशिया के उच्चतम गोल्फ कोर्स में से एक है। शीतकालीन खेलों का श्रेष्ठतम स्थान है। रानीखेत से करीब 5 किलोमीटर दूर है। उच्चतम स्थान पर होने हरा भरा घास का मैदान आश्चर्यजनक होने के साथ साथ बेहद सुन्दर भी है।
      आशियाना पार्क : आशियाना पार्क रानीखेत शहर के मध्य में स्थित एक सुन्दर पार्क है। पार्क खास तौर से जंगल थीम पर डिजाइन है। बच्चों के लिए एक बेहतरीन पार्क है।
मानखेश्वर मंदिर: मानखेश्वर मंदिर कुमाऊं रेजिमेंट के द्वारा निर्मित है। मंदिर के निकट ही गुरुद्वारा एवं शाल कारखाना है।
     रानी झील: रानी झील रानीखेत शहर में स्थित है। झील की सुन्दरता देखते ही बनती है। इसे रानीखेत का एक शानदार एवं सुन्दर नगीना कहा जा सकता है। पर्यटक यहां नौकायन का आनन्द ले सकते हैं।
     बिंसार महादेव: बिंसार महादेव भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर की कलात्मकता देखते ही बनती है। मंदिर के निकट बहने वाली नदी की धारा सुन्दरता में चार चांद लगाती है। बिंसार महादेव का यह मंदिर देवदार के सुन्दर वन क्षेत्र से घिरा है। यहां एक आश्रम भी है।
     हैडाखान मंदिर: हैडाखान मंदिर रानीखेत से करीब 4 किलोमीटर दूर स्थित है। इसे बाल खान मंदिर या चिलियालाउला भी कहा जाता है। विशाल हिमालय की चोटियों से घिरा यह मंदिर अति सुन्दर लगता है।
     भालू बांध: भालू बाध एक कृतिम झील है। बांध के निकट ही एक सुन्दर बगीचा भी है। हिमालय की चोटियों के निकट भालू बांध एक रमणीक स्थल है। इस स्थान को पिकनिक का आदर्श स्थान माना जाता है।
     माजखली : माजखली रानीखेत से करीब 12 किलोमीटर दूर है। हिमालय के नजदीक यह क्षेत्र बेहद बर्फीला है। रानीखेत एवं अल्मोड़ा का यह एक शानदार पिकनिक स्पॉट है। यहां से हिमालय का सुन्दर दृश्य दिखता है।
     कटमामल सूर्य मंदिर: कटमामल सूर्य मंदिर भगवान भाष्कर को समर्पित श्रेष्ठतम मंदिरों में से एक है। उड़ीशा के कोणार्क मंदिर के बाद कटमामल सूर्य मंदिर को स्थान मिलता है। करीब 800 वर्ष पुराने इस मंदिर का पौराणिक इतिहास है। यह मंदिर मूर्ति शिल्प का शानदार उदाहरण है। रानीखेत से यह सूर्य मंदिर करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित है।
    कुमाऊं रेजीमेंटल सेंटर: कुमाऊं रेजीमेंटल सेंटर एक समृद्ध संग्रहालय है। इसमें प्रथम विश्व युद्ध के नायकों की यशोगाथा का विस्तृत संग्रह है। इसमें विश्व युद्ध में उपयोग में लाये गये हथियारों का प्रदर्शन है।
      राम मंदिर: राम मंदिर भगवान राम को समर्पित मंदिर है। यह मंदिर पहाड़ की चोटी पर स्थित है। यह एक मठ की भांति संचालित है। छात्रों को यहां वैदिक परम्पराओं, आधुनिक गणित एवं प्राचीन वेदों की भी शिक्षा दी जाती है। वेदों में गहन रुचि रखने वालों के लिए यह एक श्रेष्ठतम स्थान है।
      चौबतिया गार्डेन: चौबतिया गार्डेन रानीखेत से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित है। यह इलाका बादाम एवं सेब बागानों के लिए प्रसिद्ध है। हिमालयीय वनस्पतियों का यह अति समृद्ध क्षेत्र है। हिमपात होने पर हिमालय का सुरम्य दृश्य यहां से दिखता है।
    रानीखेत हिल स्टेशन की यात्रा के लिए सभी आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं। निकटतम एयरपोर्ट पंत नगर है। निकटतम रेलवे स्टेशन राम नगर एवं काठगोदाम है। सड़क मार्ग से भी रानीखेत हिल स्टेशन की यात्रा की जा सकती है।
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Friday, 18 May 2018

फूलों की घाटी : धरती का स्वर्ग

     उत्तराखण्ड स्थित 'फूलों की घाटी" को धरती की स्वर्ग कहा जाये तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। गढ़वाल क्षेत्र की यह 'फूलों की घाटी" पर्यटकों के मन-मस्तिष्क को सुगंध से प्रफुल्लित कर देती है।

    इन्द्रधनुषी रंगों के फूलों से लकदक रहने वाली 'फूलों की घाटी" देश-विदेश के पर्यटकों की पहली पसंद रहती है। वस्तुत: 'फूलों की घाटी" नन्दा देवी अभ्यारण राष्ट्रीय उद्यान का एक सुन्दर हिस्सा है। इसे यूनेस्को से विश्व धरोहर का दर्जा हासिल है।
   'फूलों की घाटी" को वर्ष 1982 में यूनेस्को से यह सम्मान हासिल हुआ। 'फूलों की घाटी" घूमने-फिरने का उचित समय जुलाई से सितम्बर की अवधि है। यह समय कुछ खास भी रहता है क्योंकि इस अवधि में 'फूलों की घाटी" में ब्राह्मकमल खास तौर से खिलते है। नवम्बर से मई तक 'फूलों की घाटी" खास दिखती है क्योंकि इस अवधि में बर्फ से आच्छादित रहती है। 
    करीब आधा किलोमीटर चौड़ी एवं करीब 3 किलोमीटर लम्बी यह 'फूलों की घाटी" काफी कुछ खासियत रखती है। विशेषज्ञों की मानें तो रामायण काल में हनुमान जी संजीवनी की खोज में इसी घाटी में आये थे। 'फूलों की घाटी" वस्तुत: उत्तराखण्ड का उच्च हिमालयी क्षेत्र है। करीब 87.50 वर्ग किलोमीटर दायरे में फैली यह खूबसूरत घाटी पर्यटकों को सहज ऊर्जावान बनाती है।
     पर्यटकों को एक रोमांच का एहसास होता है। खास यह है कि ब्रिाटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ एवं उनके साथी आर एल होल्डसवर्थ ने वर्ष 1931 में इस सुन्दर घाटी को खोजा था। इन पर्वतारोहियों ने इस बेइंतहा खूबसूरत 'फूलों की घाटी" को शब्दों के जरिये एक किताब में उतारा। इसे उन्होंने वैली ऑॅफ फ्लावर्स नाम दिया। खास यह कि 'फूलों की घाटी" 500 से अधिक प्रजातियों के फूलों से आच्छादित रहती है। बागवानी प्रेमियों का यह सबसे पसंदीदा क्षेत्र है।
    'फूलों की घाटी" में सामान्यत: एनीमोन, जर्मेनियम, मार्श, गेंदा, प्रिभुला, पोटेंटिला, जिउम, तारक, लिलियम, हिमालयी नीला पोस्त, बछनाग, डेलफिनियम, रानुनकुलस, कोरिडालिस, इन्डुला, सौसुरिया, कम्पानुला, पेडिक्युलरिस, मोरिना, इम्पेटिनस, बिस्टोरटा, लिगुलारिया, अनाफलिस, सैक्सिफागा, लोबिलिया, थर्मोपसिस, ट्रौलियस, एक्युलेगिया, कोडोनोपसिस, डैक्टाइलोरहिज्म, साइप्रिपेडियम, स्ट्राबेरी, लिली, कैलेंडुला, डेजी, हिमालयन नीले अफीम एवं रोडोडियोड्रान आदि सहित अनेक प्रकार के फूलों की प्रजातियों के फूल परिवेश को सुगंध से आच्छादित रखते हैं।
     करीब 500 प्रजातियों के फूल इस 'फूलों की घाटी" में सुन्दरता एवं सुगंध बिखेरते रहते हैं। बर्फीली घाटियों का यह क्षेत्र बेहद स्वास्थ्यवर्धक है। कारण फूलों में अद्भुत आैषधीय गुण विद्यमान हैं। विशेषज्ञों की मानें तो 'फूलों की घाटी" के फूलों का उपयोग आैषधीय निर्माण में भी होता है। रामायण काल की संजीवनी का कथानक सिद्ध होता है। ह्मदय रोग, अस्थमा, शुगर, मानसिक उन्माद, किडनी, लीवर एवं कैंसर आदि सहित असाध्य रोगों का निवारण क्षमता वाली आैषधीय भी यहां 'फूलों की घाटी" में उपलब्ध हैं।
   अत्यंत दुलर्भ वनस्पतियों का खजाना इस घाटी को माना जाता है। खास यह कि नवम्बर के अंत तक 'फूलों की घाटी" बर्फ से अाच्छादित हो जाती है। बर्फ हटते ही स्वत: 'फूलों की घाटी" एक बार फिर फूलों से लबरेज हो जाती है। 'फूलों की घाटी" में अल्पाइन सहित दुलर्भ प्रजातियों के फूलों की श्रंखला दिखती है।  'फूलों की घाटी" उत्तराखण्ड चमोली जिला में बद्रीनाथ धाम के निकट स्थित है।
    बद्रीनाथ धाम से करीब 20 किलोमीटर दूर स्थित 'फूलों की घाटी" वस्तुत: दो पहाड़ों के बीच का हिस्सा है। रंग बिरंगे फूलों की यह श्रंखला हिमालय में इन्द्रधनुषी रंग भरती दिखती है। नन्दा देवी अभ्यारण का यह हिस्सा देश-विदेश के पर्यटकों से गुलजार रहता है। इस राष्ट्रीय उद्यान में वन्य जीवन का भी अवलोकन होता है।
    मसलन काला हिमालयन भालू, कस्तूरी मृग, हिम तेंदुये आदि राष्ट्रीय उद्यान में प्रवास करते हैं। 'फूलों की घाटी" की यात्रा के लिए पहला पड़ाव गोविन्द घाट है। हरिद्वार से करीब 200 किलोमीटर दूर 'फूलों की घाटी" पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहती है।
     फूलों की घाटी" की यात्रा के लिए सभी आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं। निकटतम एयरपोर्ट जॉली ग्रांट देहरादून में स्थित है। निकटतम रेलवे स्टेशन हरिद्वार में है। इसके अलावा यात्रा के लिए सड़क मार्ग का उपयोग किया जा सकता है।
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Sunday, 13 May 2018

कुफरी हिल स्टेशन: प्रकृति का एहसास

     कुफरी हिल स्टेशन के क्या कहने। हर दृष्टि से लाजवाब। निश्चय ही हिमाचल प्रदेश की हसीन वादियां पर्यटकों का मनमोह लेंगी। हिमाचल प्रदेश का 'कुफरी हिल स्टेशन" बेहद सुन्दर है। कुफरी हिल स्टेशन प्रकृति की गोद का एक सुन्दर नगीना है। 

   कुफरी हिल स्टेशन की सुगंधित आबोहवा पर्यटकों को एक नई ऊर्जा, एक नया जोश, एक नया उत्साह देती है। समुद्र तल से करीब 2633 मीटर ऊंचाई पर स्थित कुफरी हिल स्टेशन गर्मी में भी दे सर्दी का सुखद एहसास।
   वनस्पतियों की सुगंध से भरपूर कुफरी हिल स्टेशन में पर्यटकों को हर पल-हर क्षण एक रोमांच का एहसास होता है। कहीं बर्फ की चादर ओढ़े हिम शिखर सीना ताने खड़े हैं तो कहीं हसीन वादियां मन-मस्तिष्क को लुभाती हैं। यहां की प्राकृतिक सुन्दरता पर्यटकों को बरबस आकर्षित करती है।
      लिहाजा देश-दुनिया के पर्यटक ख्ंिाचे चले आते हैं। कुफरी हिल स्टेशन छोटा पर बेहद खूबसूरत पर्यटन क्षेत्र है। इसे हिमाचल प्रदेश की शान कहा जाये तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। आकाश तक तने हिम शिखर, बर्फ से ढ़के हिम शिखर, गहरी घाटियां-वादियां, मीठे पानी के झरने आदि बहुत कुछ कुफरी हिल स्टेशन में हैं।
     शीतकालीन खेलों के लिए यह बेहद पसंदीदा स्थान है। देवदार के सुन्दर वृक्षों की श्रंखला मुग्ध कर देती है। कुफरी हिल स्टेशन खास तौर से ब्रिाटिश हुकूमत में ग्रीष्मकालीन राजधानी भी रह चुका है। पर्यटक कुफरी हिल स्टेशन के निकट ही हिमालयन वाइल्ड लाइफ का रोमांच भी महसूस कर सकते हैं।
     कुफरी हिल स्टेशन क्षेत्र में आलू का एक अनुसंधान केन्द्र भी है। यह हिल स्टेशन आकर्षण एवं सुन्दर स्थलों से आच्छादित है। चीनी बंगला, जाखू मंदिर, गैटी हेरिटेज सांस्कृतिक केन्द्र, भारतीय उन्नत अध्ययन संस्थान, तारा देवी का मंदिर, सेंट मेरी चर्च, काली बाड़ी, संकट मोचन, हिमालयी वर्ड पार्क एवं रोथनी कैसल आदि बहुत कुछ है।
      चीनी बंगला: चीनी बंगला मूर्तिकला एवं वास्तुशिल्प के लिए खास तौर से जाना जाता है। हालांकि इसे अब फन वल्र्ड के रूप में विकसित किया गया है।
     जाखू मंदिर: जाखू मंदिर राम भक्त श्री हनुमान को समर्पित है। जाखू मंदिर में हनुमान जी की दिव्य-भव्य प्रतिमा स्थापित है। मंदिर को प्रेम एवं भक्ति का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर में श्री हनुमान जी के पदचिह्न हैं। यह मंदिर जाखू पहाड़ी पर स्थित है। यहां से शिवालिक पर्वत का सुन्दर नजारा दिखता है।
      तारा देवी का मंदिर: तारा देवी का मंदिर घने जंगल में स्थित है। मान्यता है कि तारा देवी बंगाल से हिमाचल प्रदेश आयीं थीं। तारा देवी को सितारों की देवी भी कहा जाता है।
     सेंट मेरी चर्च: सेंट मेरी चर्च लकड़ी की सुन्दर नक्काशी का एक सुन्दर निर्माण है। सेंट मेरी चर्च लकड़ी का एक चैपल है। चैपल 1843 में स्थापित किया गया था। यहां के वास्तुशिल्प की सुन्दरता देखते ही बनती है।
    काली बाड़ी: काली बाड़ी कुफरी हिल स्टेशन का लोकप्रिय स्थान है। यह स्थान काली जी को समर्पित है। इसे श्यामला मंदिर भी कहा जाता है। यह राजसी मंदिर वर्ष 1845 में बनाया गया था। इसी श्यामला नाम से शिमला को शिमला कहा जाने लगा। शिमला का यह धार्मिक स्थान शिमला सहित आसपास के इलाकों में प्रसिद्ध है।
      संकट मोचन मंदिर: संकट मोचन मंदिर हिल स्टेशन के मुख्य आकर्षण में है। यह धार्मिक स्थान भगवान श्री राम को समर्पित है। जाखू मंदिर के बाद शिमला का यह दूसरा सबसे प्रसिद्ध स्थान है। विशेषज्ञों की मानें तो 1950 में बाबा नीम करौली बाबा की पहल का यह मंदिर परिणाम है। इस स्थान की सुन्दरता चकित करने वाली है।
     हिमालयी राष्ट्रीय उद्यान: हिमालयी राष्ट्रीय उद्यान कुफरी हिल स्टेशन के खास आकर्षण में से एक है। हिमालयी राष्ट्रीय उद्यान में पक्षियों की 108 प्रजातियां एवं दुलर्भ वन्य जीवन की उपलब्धता है। उद्यान का निर्माण 1984 में किया गया था लेकिन राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा इसे 1999 में हासिल हुआ।
      करीब 754.4 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ यह उद्यान एक सुन्दर पर्यावरण पर्यटन केन्द्र है। इस उद्यान में कस्तूरी हिरन एवं हिम तेंदुए आदि बड़ी तादाद में हैं।
      कुफरी हिल स्टेशन की यात्रा के लिए सभी आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं। निकटतम एयरपोर्ट शिमला में स्थित है। शिमला से कुफरी की दूरी करीब 22 किलोमीटर है। रेल मार्ग से भी पर्यटक कुफरी हिल स्टेशन की यात्रा कर सकते हैं। कालका, चण्डीगढ़ या अमृतसर तक रेलवे की सेवायें पर्यटक आसानी से ले सकते हैं। सड़क मार्ग से भी पर्यटक कुफरी हिल स्टेशन की यात्रा कर सकते हैं।
31.097858,77.267814

Thursday, 10 May 2018

कुल्लू हिल स्टेशन: रोमांच का आनन्द

     कुल्लू हिल स्टेशन को श्रेष्ठतम एवं सुन्दरतम पर्यटन क्षेत्र कहा जाये तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। कुल्लू हिल स्टेशन मौज-मस्ती के साथ धर्म-आस्था एवं विश्वास का भी केन्द्र है।

   समुद्र तल से करीब 2950 मीटर ऊंचाई पर स्थित कुल्लू हिल स्टेशन पर्यटकों के खास एवं चुनिंदा पर्यटन क्षेत्रों में है। कुल्लू में चौतरफा हिम शिखर, बादलों की आवाजाही, मखमली घास के हरे-भरे लॉन, रुई के फाहों सी बर्फबारी, सुगंधित हवाओं के शीतल झोंके, मंदिरों से अनुगंूजित घंटा-घड़ियालों की टंकार किसी के भी मन को आकर्षित करती है।
     कुल्लू हिल स्टेशन में चौतरफा रोमांच का अनुभव होता है। कुल्लू हिल स्टेशन को वस्तुत: देवताओं की घाटी के रूप में जाना-पहचाना जाता है। इसका बड़ा कारण है कि कुल्लू में चौतरफा मंदिर एवं धर्म-आस्था के केन्द्र विद्यमान हैं।
     भौतिक दृष्टि से देखें तो कुल्लू एवं मनाली दो पहाड़ी हिल स्टेशन हैं। फिर भी कुल्लू एवं मनाली दोनों का अपना एक अलग अस्तित्व है। कुल्लू हिल स्टेशन अधिकांश समय मंदिरों एवं त्योहारों से सजा धजा रहता है। लिहाजा कुल्लू हिल स्टेशन की अपनी एक अलग ही सुन्दरता दिखती है। हिमालय की भव्यता-दिव्यता का स्पष्ट अवलोकन यहां होता है।
     कुल्लू वस्तुत: हिमाचल प्रदेश का एक सुन्दर शहर है। इसे कुलंथपीठ भी कहा जाता है। विज नदी के किनारे बसा कुल्लू खास तौर से दशहरा के लिए विश्व प्रसिद्ध है।  खास यह है कि 17 वीं शताब्दी का रघुनाथ जी का मंदिर भी यहां स्थित है। रघुनाथ जी का मंदिर हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थ भी है।
    कुल्लू हिल स्टेशन को सिल्वर वैली की ख्याति भी हासिल है। कुल्लू के सेब बागान मन को खास तौर से लुभाते हैं। यहां के हस्तशिल्प का भी कोई जोड़ नहीं है। कुल्लू हिल स्टेशन के खास आकर्षण में देखें तो रघुनाथ जी मंदिर, बिजली महादेव मंदिर, नग्गर, जगतसुख, देव टिब्बा, बंजार, मणीकरन, रुमसू एवं वन्य जीव अभ्यारण आदि बहुत कुछ है।
    रघुनाथ जी मंदिर: रघुनाथ जी मंदिर का निर्माण 17 वीं शताब्दी में राजा जगत सिंह ने कराया था। यहां रघुनाथ जी रथ पर विराजमान हैं। विशेषज्ञों की मानें तो रघुनाथ जी की प्रतिमा अयोध्या से मंगवाई गयी थी। इस मंदिर की शोभा वाकई दर्शनीय है।
     बिजली महादेव मंदिर: बिजली महादेव मंदिर कुल्लू से करीब 14 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित है। बिजली महादेव मंदिर का मुख्य आकर्षण 100 मीटर लम्बी ध्वजा छड़ी है। इसे देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे ध्वजा छड़ी सूरज को भेदने का प्रयास कर रही हो।
      खास यह कि साल में एक बार अवश्य ऐसा होता है कि कड़कती बिजली ध्वजा पर गिरती है। कभी कभी मंदिर के अंदर शिवलिंग पर भी बिजली गिरती है। जिससे शिवलिंग खंडित हो जाता है। खंड़ित शिवलिंग को मक्खन से जोड़ा जाता है। जिससे शिवलिंग पुन: सामान्य हो जाता है। इस स्थान से कुल्लू एवं घाटी का सुन्दर दृश्य दिखता है।
     वॉटर एण्ड एडवेंचर स्पोटर्स: कुल्लू हिल स्टेशन में मछली पकड़ने का आनन्द कई स्थानों पर उठाया जा सकता है। खास तौर से पिरड़ी, रायसन, कसोल नागर, जिया आदि स्थान हैं। व्यास नदी में रॉफ्टिंग का भरपूर आनन्द लिया जा सकता है।
     जगतसुख: जगतसुख कुल्लू की प्राचीन राजधानी है। विज नदी के बायीं ओर जगतसुख स्थित है। यहां दो प्राचीन मंदिर हैं। यह मंदिर गौरी शंकर महादेव एवं संध्या देवी के मंदिर हैं।
       नग्गर: नग्गर खास तौर से एक सुन्दर शहर है।यह स्थान 1400 वर्षों तक कुल्लू की राजधानी रहा। पत्थर एवं लकड़ी के आलीशान महल दर्शनीय हैं। हालांकि इनमें से अधिसंख्य अब होटल या रिसार्ट में तब्दील हो चुके हैं। यहां रुसी चित्रकार निकोलस रोएरिक की चित्र दीर्घा भी है। नग्गर में विष्णु, त्रिपुर सुन्दरी एवं भगवान श्री कृष्ण के प्राचीन मंदिर भी हैं।
       देव टिब्बा: देव टिब्बा समुद्र तल से करीब 2953 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। इस स्थान को इन्द्रालिका भी कहा जाता है। कहावत है कि महर्षि वशिष्ठ ने अर्जुन को पशुपति अस्त्र पाने के लिए इस स्थान पर तप करने करने का परामर्श दिया था। अर्जुन ने अस्त्र पाने के लिए इस स्थान पर तप किया था।
      बंजार: बंजार ऋंग ऋषि का प्रसिद्ध मंदिर है। ऋषि की याद में इस स्थान पर प्रति वर्ष भव्य उत्सव मनाया जाता है। इस स्थान से करीब 19 किलोमीटर दूर सियोल्सर झील है। यहां गर्मियों में भी बर्फ की चादर दिखती है।
      मणिकरन: मणिकरन कुल्लू हिल स्टेशन से करीब 43 किलोमीटर दूर है। मणिकरन वस्तुत: वॉटर फॉल्स है। इस वॉटर फॉल्स का पानी गर्म होता है। इस जल को रोग निवारक भी माना जाता है। मणिकरन हिन्दुओं एवं सिखों का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यहां गुरुद्वारा, श्रीराम एवं शिव जी का प्राचीन मंदिर है।
        कुल्लू हिल स्टेशन की यात्रा के लिए सभी आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं। निकटतम एयरपोर्ट भुुंतर में है। भुंतर कुल्लू से करीब 10 किलोमीटर दूर है। चंडीगढ़ एयरपोर्ट का भी यात्रा के लिए उपयोग कर सकते हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन चंडीगढ़ एवं पठानकोट है। सड़क मार्ग से भी कुल्लू की यात्रा की जा सकती है।
31.957851,77.109460

फागू हिल स्टेशन: रोमांचक एहसास    फागू हिल स्टेशन निश्चय ही दिल एवं दिमाग को एक सुखद शांति एवं शीतलता प्रदान करेगा। फागू हिल स्टेशन आकार...